नर्मदा की कथा भारतीय पौराणिक कथाओं में एक विशेष स्थान रखती है। यह कहानी प्रेम, विश्वासघात और एक स्त्री की अडिगता की मिसाल है। लोककथाओं के अनुसार, नर्मदा की शादी शोणभद्र से तय हो चुकी थी, लेकिन शादी से ठीक पहले उन्हें पता चला कि शोणभद्र की दिलचस्पी उनकी दासी जुहिला में है। यह सुनकर नर्मदा इतनी आहत हुईं कि उन्होंने विवाह मंडप छोड़ दिया और विपरीत दिशा में बहने का निर्णय लिया। यह उनके स्वाभिमान और अपमान का प्रतिशोध था। नर्मदा आज भी पश्चिम की ओर बहने वाली गिनी-चुनी नदियों में से एक हैं, जो उनके इस संकल्प का प्रतीक है। इस घटना ने नर्मदा को 'चिरकुंवारी' का दर्जा दिया, यानी जो हमेशा कुंवारी रही। नर्मदा की यह प्रेम कथा लोकगीतों, लोककथाओं और धार्मिक आस्थाओं में जीवित है। कहते हैं कि नर्मदा की परिक्रमा करने वाले भक्त आज भी इस पवित्र नदी के प्रति अपना सम्मान और श्रद्धा व्यक्त करते हैं। नर्मदा की इस दास्तां में प्रेम, अपमान और प्रतिशोध की गाथा है, जो आने वाली पीढ़ियों तक एक प्रेरणा के रूप में जानी जाती है।
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https://youtu.be/PAwevpJcY50